आवाज़ अंतरात्मा की ...
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December 28, 2015
माँ
काश ! कि सपने की तरह
कहीं मिल जाओ तुम मुझे
यूँ ही अचानक माँ
और मैं लग कर गले तुम्हारे
जी भर के रो लूँ
सो जाऊ गोद में रखकर
सिर तुम्हारी
तुम्हे कहीं जाने न दूँ
ये शहरो की दूरियां
बहुत रुलाने लगी है माँ ......!!!
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