December 15, 2015

मेरी डायरी से ........ कुछ बिखरे पन्ने-3

गतांक से आगे .......

एक दशक हो गया है माँ को देखे हुए ....., जब भी चोट लगती है न जाने क्यों इतनी नफरत के बावजूद कह उठता हूँ माँ...... लौट आओ न.......,

माँ ....., लोग कहते हैं माँ दुनिया में सब से अच्छी होती है, सबसे प्यारी होती है, इस दुनिया में कोई साथ दे या चाहे न दे माँ हमेशा अपने बच्चो के साथ रहती है, वो उन्हें कभी छोड़ कर नही जाती, कभी भी नही.....

अक्सर जब भी खुद को देखता हूँ, जब भी अपने वजूद को महसूस करता हूँ, माँ की याद आने लगती है, मेरा होना ही मुझे माँ की याद दिला देता है, न जाने क्यों नफरत करता हूँ फिर भी याद करता रहता हूँ, शायद यहीं खासियत होती होगी माँ की कि लाख नफरतो के बाद भी वो बच्चों के जेहन से दूर नही जा पाती, मेरे जितने भी दोस्त हैं, उनकी सबकी माँ-ऐ उनके साथ रहती हैं, वो सब हमेशा खुश रहते हैं, हम सब लोग जब एक साथ एक गली में खेल रहे होते हैं तब थोड़ी देर हो जाने पर ही सब लोग यह कहकर घर लौट जाने के लिए भागने लगते हैं कि अगर घर पहुचने में देर हो गयी तो माँ डाटेंगी, अगर हम समय पर नही पहुंचे तो वो चिंता भी करने लगेंगी ....,

जब वो लोग घर जाने के लिए जल्दी में होते हैं तब मैं बिलकुल शांत हो जाता हूँ, जैसे मुझे घर जाने की कोई जल्दी नही होती और मैं इसलिए बहुत खुशनसीब हूँ क्योंकि मुझे कोई डांटने वाला नही है, या फिर डांटने वाली नही है, जो उनके पास है, जब वो लोग कहते हैं कि माँ की डांट की वजह से उन्हें जल्दी घर जाना पड़ेगा तो मैं भी बहुत शान से कह देता हूँ ....

तुम सब लोगो से तो मैं ही अच्छा हूँ, कम से कम मुझे किसी के डर से अपना मन पसंद खेल छोड़कर जल्दी घर तो नही भागना पड़ता ....

मेरे सारे दोस्त जब अपने-अपने घर चले जाते हैं तब मैं वही गली में लगे एक पेड़ के नीचे बैठ जाता हूँ और सोचने लगता हूँ कि क्या मैं सच में अच्छा हूँ ?

एक सवाल बचपन से लेकर आज तक मेरे साथ चलता आ रहा है - अगर मैं सच में अच्छा हूँ तो फिर मेरी माँ मुझे यूँ अकेला छोड़ कर क्यूँ चली गयी ?

आगे कल .....

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