February 7, 2015

खुद से ही जैसे बेगाने से हो गये हैं हम ......



न जाने क्यों आजकल खुद से भी बेगाना होने का एहसास हो रहा है, लगता है जैसे कोई सब कुछ छीन कर ले गया हो मुझसे और जो मेरे पास बचा है दिल करता वो सब देकर किसी को ले चलूँ खुद को एक अजनबी सी मंजिल की ओर ! रूपये, पैसे, रिश्ते, नाते सब से मुहं मोड़ कर चल दूँ एक गुमनाम से रास्ते पर ..., धन- दौलत, पैसा अब किसी की इच्छा शेष नही रही, सोना-चांदी, हीरा सब कुछ कंकड़ पत्थर के समान लगने लगा है ....मन के कमरे में जैसे कोहरा छाया हो, खिड़की से बाहर झांक कर देखा तो हलकी सी धुप नज़र तो आई लेकिन मन को फिर भी सुकून नही मिला, मैं मन के कमरे से बाहर निकलना ही नही चाहती, धुप लगता है जैसे मेरी आँखों में चुभ रही हो..., रात भर किस दर्द से मेरी आँखे भीगी रहती हैं पता नही, लगता है जैसे आंसू किसी और बात के हों आँखों में और दिल में दर्द किसी और बात का हो रहा हो...., आधी-आधी रात रोते हुए गुजर जाती है और अगला पूरा दिन ये सोचने में कि आखिर मेरे इतना रोने की वजह क्या थी..., लोग सोचते हैं मैं बहुत दुःख में हूँ, इसलिए उदास हूँ लेकिन मैं कौन से दुःख में हूँ ये न वो जानते हैं और न ही मैं..., हाँ इतना जरुर जानती हूँ कि ख़ुशी मेरे नसीब में नही लिखी, शायद इसीलिए मैं दुखी हूँ, कुछ लोग हैं जिनकी आँखों से बहता एक-एक आंसू मुझे जिंदगी से कोसो दूर ले जाता है, उनके दुखी होने के एहसास होने भर से मेरी आत्मा कहने लगती है "जिंदगी मुझे आज़ाद कर दे", मुझसे उन सभी का दुःख देखा नही जाता...., जब तक जिंदगी रहेगी दुःख, दर्द रहेगा...., मैं जिन्हें नही जानती उनकी उदासी मुझे ये सोचने पर मजबूर कर देती है कि आखिर क्यों मैं अपनी जिंदगी को आगे बढ़ाऊँ ...., लोगो का दुःख-दर्द जिंदगी में अब और आगे जाने से रोक लेता है...., 



कफ़न ओढ़े निकलता हूँ, आजकल जब निकलता हूँ 
न जाने किस शहर की किस गली में मौत मिल जाये ....

इस बदलती दुनिया में इन्सान के जीवन की कीमत कुछ भी नही रह गयी है, मरना-मारना बहुत मामूली सी बात हो गयी, उन दिलो का दर्द जो अपनों को खो देते हैं, मुझे किसी को भी अपना बनाने से रोकता है, बड़ी तकलीफ होती है जब कोई अपना छोड़कर चला जाये, मुहं फेर कर बैठ जाये, अपना होकर भी आपको पराया कर दे .....

सीने में दिल भी होता है और उसमे दर्द भी 
ये तब जाना हमने जब किसी को अपना माना ....

मन उब गया है, जिंदगी कहीं भी अब महसूस नही होती, बाहर से सब नार्मल है, मगर अन्दर , अन्दर जैसे सब खत्म होता जा रहा है, क्या बिखर रहा है नही मालूम, क्या जल रहा है, पता नही ...बस कुछ है जो मुझे अंदर ही अंदर खत्म करता जा रहा है, मेरे मन से अपनत्व के उस भाव को मिटाता चला जा रहा है ........दिल चाहता है अब खो जाना ......!!!


2 comments:

  1. मन के एहसासों को व्यक्त करती सार्थक पोस्ट सोनम जी

    ReplyDelete